नई दिल्ली/टीम डिजिटल। पूरी दुनिया इस समय जलवायु परिवर्तन की समस्या से जूझ रही है। देखा जाए तो हम लोग भी अक्सर जलवायु परिवर्तन को लेकर यहीं बात करते हैं कि कैसे इस समस्या से निजात पाया जाए? कैसे प्रदूषण को कम किया जाए?
संभवत: इसके लिए हमारे दिमाग में कार का धुआं , फैक्टरी से निकलने वाला धुआं या फिर नदियों में बहने वाले अवशेष ही आते हैं और इन्हें हम जलवायु प्रदूषण के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार मानते हैं।
एक तरफ मीट उत्पादन पर सख्ती तो दूसरी तरफ बढ़ावा
लेकिन क्या आप जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन की समस्या में सबसे ज्यादा 'मीट इंडस्ट्री' का हाथ होता है। जी हां ये बात जानकर शायद आपको हैरानी होगी लेकिन ये सच है। हाल ही में यूएन के फूड और एग्रीकल्चर संस्था की एक रिपोर्ट से इस बात का खुलासा हुआ है। यूएन की रिपोर्ट के अनुसार मीट इंडस्ट्री और पशुपालन ग्रीन हाउस के गैसों के उत्सर्जन का सबसे बड़े श्रोत हैं।

क्या है रिपोर्ट में-
- मीट इंडस्ट्री और पशुपालन जलवायु परिवर्तन में अहम रोल निभाते हैं।
- इससे ग्लोबल वाॅर्मिंग की समस्या दिनोंदिन बढ़ रही है।
- कुल ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन का 18 फीसदी सिर्फ मीट इंडस्ट्री और पशुपालन ही जिम्मेदार है।
- 2050 तक मीट की खपत में 76% की बढ़त हो जाएगी।
- विश्व की जनसंख्या इतनी तेजी से नहीं बढ़ रही है जितनी तेजी से प्रति व्यक्ति मीट की खपत बढ़ रही है।
- मीट और अन्य डेयरी पदार्थों के लिए पशुओं की संक्या बढ़ाई जा रही है। साथ ही पशुपालक केंद्रों में भी इजाफा हो रहा है।
- रिपोर्ट के अनुसार अकेले पशुपालन केंद्रों से 65% धुएं का उत्सर्जन हो रहा है। जिसमें सबसे घातक अमोनिया है जो कि एसिड अटैक के लिए जिम्मेदार है।
- गाय, भैंस, बकरी , भेड़ इत्यादि पशु अपने खाने को सीधे पेट में निगल लोते हैं उनका इंसानों के जैसा डाइजेस्टिव सिस्टम नहीं होता है। इससे डाइजेस्टिव बैक्टिरिया पैदा होते हैं जो सबसे ज्यादा मीथेन गैस पैदा करते हैं।
- पशुपालन केंद्रों से लगभग 44% मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है।
- बूचड़खानों से फेंके गए अवशेषों से भी गैसों का भारी मात्रा में उत्सर्जन हो रहा है।

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